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इतिहास

वर्तमान दंंतेवाड़ा जिला 1998 मे अस्थित्व मे आया । इससे पूर्व यह जिला बस्तर जिला का एक तहसील क्षेत्र था इस कारण इस जिले मे बस्तर के समृद्ध आदिवासी सभ्यता तथा जीवन शैली सहित बस्तर के सभी विलक्षण गुण मौजूद है | बस्तर क्षेत्र के दक्षिण भाग मे स्थित होने के कारण इस जिले का नाम दक्षिण बस्तर दंंतेवाड़ा रखा गया |

दुर्गम भौगोलिक संरचना के चलते यह क्षेत्र बाहरी दुनिया के पहुँच से बाहर रहने के बाद भी जिलेे के कुछ भागों मे बहुतायत मे उपलब्ध पुरातात्विक अवशेष तथा शिथिल मूर्तियांं, चरित्रकारों को तथा पुरातात्विक विशेषज्ञों से अपनी आयु व्‍यक्‍त कर क्षेत्र का गौरवशाली अतीत को खोजने की अपील करते है |

सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रंथ रामायण के अनुसार भगवान श्री राम ने अपना वनवास का समय इस क्षेत्र मे व्यतीत किया । इस तरह यह क्षेत्र उन दिनों मे जो दण्डकारण्य कहा जाता था, श्री राम का कर्म भूमि रहा |

सिंधुघाटी (सिंधु नदी के तट) के रहवासियों का एक समूह जब प्राग द्र्विड़ियों से 1500 ईसा पूर्व मे अलग हुआ और समूह के कुछ सदस्य बस्तर क्षेत्र पहुँच गए, जिनका जिक्र संंस्कृत साहित्य मे द्रविड़ बोलने वाले “नाग” के नाम से वर्णित है | छिंदक नाग आधुनिक गोंड प्रजाति के पूर्वज है ऐसी मान्यता है |

72 ईसा पूर्व से 200 ईसवींं तक बस्तर शातवाहन राजाओं से शाषित इस क्षेत्र मे नल राजवंश से पहले बौद्ध एवं जैन धर्मों का भी विकास होने के सुराख मिलते है |

ईसा पूर्व 600 से 1324 ईसवींं तक नल (350-760 ईसवींं) तथा नाग (760-1324 ईसवींं) मे इस क्षेत्र मे आदिवासी गणतंंत्र कायम था , जो उल्लेखनीय है |

बाद के समय मे यह पद्दति धीरे-धीरे क्षीण होता गया , चालुक्य राजवंश (1324-1774 ईसवींं) के समय महान गोंड सभ्यता को नष्ट करते हुए इस व्यवस्था का पतन अत्‍यधिक तेजी से हुआ |

बाहरी राजाओं के पदार्पण से इस क्षेत्र मे सामंतवाद का नीव रखा गया , जो लगातार अगले 5 शताब्दियों के कार्यकाल के लिए विकास मे जड़ता तथा अवरोध उत्पन्न किया था |

विभिन्न राजवंशों / राज्यों के कार्यकाल मे दंंतेवाड़ा 
स॰क्र राजवंश / राज्य अवधि 
1 नल 350 – 760 ईसवींं
2 नाग 760 – 1324 ईसवींं
3 चालुक्य  1324 – 1777 ईसवींं
4 भोंसले 1777 – 1853 ईसवींं
5 ब्रिटीश  1853 – 1947 ईसवींं